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Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit || संत कबीरदास के दोहे ,कबीर का जीवन परिचय , कबीर दास के दोहे हिंदी मीनिंग PDF
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कबीर के प्रसिद्ध दोहे — अर्थ सहित 📜🙏
(आज ही डाउनलोड करें – Mains Education App )
1. कबीर दास मुख बुरा न कर, मति बुरा न कर।
जो जो करै सो सो न कर, दूसरे का मन न दु:खाय। ✨
जो जो करै सो सो न कर, दूसरे का मन न दु:खाय। ✨
अर्थ: अपने मुँह से और अपने विचारों से बुरा न बोलो, किसी के कर्मों की नकल न करो और किसी का मन दुखाना न चाहो। सबका सम्मान करो।
2. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय। 🔍
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय। 🔍
अर्थ: जब मैंने दूसरों में बुराई ढूँढने निकला तो कोई बुरा नहीं मिला — किन्तु जब मैंने अपने मन को देखा तो पाया कि मुझसे बड़ा कोई दुष्ट नहीं। यानी आत्म-निरीक्षण जरुरी है।
3. ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
हरि नाम धुनता जाए, सारा संसार छोड़ देय। ❤️📖
हरि नाम धुनता जाए, सारा संसार छोड़ देय। ❤️📖
अर्थ: प्रेम का छोटा सा ज्ञान (ढाई अक्षर — प्रेम) ही सच्ची विद्या है। जो बार-बार ईश्वर का नाम जपता है वह संसारिक चीजों को छोड़कर प्रेम की राह पकड़ लेता है।
4. माटी कहे कि क्या रखूँ, पानी कहे तुख़ूँ नहाऊँ।
आग कहे काँच रहूँ, पान कहे बनाए राखूँ। 🌱🔥
आग कहे काँच रहूँ, पान कहे बनाए राखूँ। 🌱🔥
अर्थ: संसार की सभी चीजें एक-दूसरे से अलग अनुभव कराती हैं — माटी, पानी, आग आदि का अपना-अपना स्वरूप और उपयोग है। यह दोहा संसार के विविधता व संबंध को दर्शाता है।
5. साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देइ उडाय। 🧘♂️🌾
सार-सार को गहि रहे, थोथा देइ उडाय। 🧘♂️🌾
अर्थ: सच्चा साधु वही है जो सूप की तरह हो — अनावश्यक बातों को छोड़कर सार को पकड़े और फालतू चीजों को त्याग दे।
6. नीच न जाइए, उदासो होत।
संसार में जाके कौनु सुखी रहल? 🤲
संसार में जाके कौनु सुखी रहल? 🤲
अर्थ: दुनिया भर में कोई स्थायी सुख का ठिकाना नहीं है; न तो ऊँच-नीच स्थायी है और न ही सांसारिक सुख। इसलिए माया के पीछे न भागो।
7. मोको कहाँ ढूँढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबा कैलास में। 🕊️🏡
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबा कैलास में। 🕊️🏡
अर्थ: मैं (ईश्वर) बाहर कहीं नहीं; मुझे अपने अंदर ही खोजो। मैं किसी खास मंदिर या मस्जिद में बँधा नहीं, मेरे लिए आंतरिक भक्ति ज़रूरी है।
8. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय है, बहुरि करेगा कब। ⏳⚡
पल में परलय है, बहुरि करेगा कब। ⏳⚡
अर्थ: जो काम कल पर टाल दिया जाता है उसे आज ही कर लो; आज जो कर सकते हो उसे अभी कर लो क्योंकि भविष्य अनिश्चित है।
9. अपने ही चिरागे से घर जले, दूसरा राख न डाले।
क्यों कर बदनामी, अपनी करनी बचाले। 🕯️🔥
क्यों कर बदनामी, अपनी करनी बचाले। 🕯️🔥
अर्थ: अपनी ही गलती या कर्म से जो नुक़सान होता है वह दूसरों के कारण नहीं होता; अपनी करनी पर ध्यान दो और झूठी बदनामी से बचो।
10. पानी रहे न भरत, धूप रहे न झर।
मन का जो भी हाल, वही संसार का सर। 💧☀️
मन का जो भी हाल, वही संसार का सर। 💧☀️
अर्थ: प्रकृति के नियम अलग हैं; पर मनुष्य के मन का हाल ही संसार को परिभाषित करता है — मन को नियंत्रित करो।
11. संत न पहुँचे पवित्र, न पापी पहुँचे कोय।
जो मन में बसा सच्चा, वही सचापंथ होय। 🕉️
जो मन में बसा सच्चा, वही सचापंथ होय। 🕉️
अर्थ: कोई बाहरी स्थान या बाहरी कर्म ही किसी को पवित्र नहीं बनाते — जो इंसान के मन में सच्चाई और भक्ति है वही उसे पवित्र बनाती है।
12. जे कोहिं कहे सो तिनाई, जे तासे कहिओ न जाय।
कहै कबीर सुनो भई साधो, यही बात मन मुझ पाए। 🔔
कहै कबीर सुनो भई साधो, यही बात मन मुझ पाए। 🔔
अर्थ: सबकी बातों में सत्य और असत्य है; पर जो सत्य है वह सीधे मन में उतरता है। कबीर कहता है — वही बातें अपनाओ जो मन में गूँजें।
13. होथ रही खटाके, नाच न आने धरे।
कहां रही घट जानी, कबीर सुनो सखे रे। 💃
कहां रही घट जानी, कबीर सुनो सखे रे। 💃
अर्थ: केवल दिखावा और शोर-शराबा से कोई परिणाम नहीं मिलता; सच्चे गुण और अभ्यास की आवश्यकता है।
14. माया मरे न तासे, पर की दया खाए।
कैसी रीति लगी दुनिया, कबीर बसु सुरत साए। 🌍
कैसी रीति लगी दुनिया, कबीर बसु सुरत साए। 🌍
अर्थ: माया (भौतिक लालसा) खत्म नहीं होती, पर जो ईश्वर का नाम समझ लेता है वह माया से स्वतंत्र हो सकता है।
15. जित गेहूँ तित रोटी, जित पानी तित प्राण।
बहुरि कोन जाने कबीर, काहे का है जहान? 🍞💧
बहुरि कोन जाने कबीर, काहे का है जहान? 🍞💧
अर्थ: जैसा अन्न और पानी मिलेगा वैसा जीवन चलेगा — संसार क्षणिक है; जीवन के सच्चे अर्थ पर ध्यान दें।
16. सिंहासन खाली करो, कबीर अवतार बैठा।
कहावतें बहुते अजब, मन में जो ठहरता वही सच्चा। 👑
कहावतें बहुते अजब, मन में जो ठहरता वही सच्चा। 👑
अर्थ: बाहरी सत्कार या दर्जा कुछ नहीं बताते; मन में जो बसा वह असली सत्ता है।
17. राम नाम जपो सब कोई, कबीर कहे यहि पर।
नाम ही शरणा सर्वत्र, छोड़ो माया का घर। 📿
नाम ही शरणा सर्वत्र, छोड़ो माया का घर। 📿
अर्थ: ईश्वर के नाम का जप ही सर्वोच्च शरण है; माया से मुक्त होकर नाम-समाधि की ओर बढ़ो।
18. दागे देह की माया पड़ी, कबीर छूटे न बड़े।
मन की जो शुचि पड़ी, वही हरि के बड़े। 🧼
मन की जो शुचि पड़ी, वही हरि के बड़े। 🧼
अर्थ: बाहरी शुद्धि से कुछ नहीं होता; मन की शुद्धि ही परम पवित्रता है और वही ईश्वर के निकट ले जाती है।
19. कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जानै, उसकी पीर किस काम। 🌿
जो पर पीर न जानै, उसकी पीर किस काम। 🌿
अर्थ: सच्चा गुरू वही जो दूसरों की पीड़ा समझे और उसका निवारण करे; जो ऐसा नहीं जानता, उससे क्या लाभ।
20. चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोए।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय। ⚙️😢
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय। ⚙️😢
अर्थ: संसार की चक्की (जीवन के चक्र) इतनी कठोर है कि कई बार कोई भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं रहता — सभी को विनाश और परिवर्तन का भय है; इसलिए सत्संग और सत्कर्म आवश्यक हैं।
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