मध्यप्रदेश में बोली जाने वाली बोलियां इस प्रकार है- 1. बुंदेली
2. बघेली
3. मालवी
4. निमाड़ी
5. भीली
6. गोंड
7. कोरकू
1. बुंदेली– बुंदेलखंड में प्रचलित लोक भाषा बुंदेलखंडी या बुंदेली कहलाती है। इसका क्षेत्र अत्यंत व्यापक है।यह उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड और मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ छतरपुर पन्ना सागर दमोह जबलपुर कटनी नरसिंहपुर सिवनी रायसेन भोपाल सीहोर होशंगाबाद विदिशा गुना अशोकनगर भिंड मुरैना ग्वालियर दतिया शिवपुरी आदि जिलों में प्रमुख रूप से बोली जाती है।
2. बघेली – बघेलखंड में व्यवहारिक भाषा को बघेलखंडी या बघेली कहा जाता है।भाषा वैज्ञानिकों ने इसे आर्य भाषा परिवार में पूर्वी हिंदी के अंतर्गत अवधी और छत्तीसगढ़ी के साथ रखा है। बघेली पर अवधि और छत्तीसगढ़ी का प्रभाव भी परिलक्षित होता है। यह मध्य प्रदेश के रीवा, सतना, सीधी, शहडोल, अनूपपुर आदि जिलों में प्रमुख रूप से बोली जाती है। इस भाषा में भी पारंपरिक गीत, कथा और लोकोक्तियों का भंडार है।
3. मालवी– मालवी भाषा का प्रमुख क्षेत्र प्राचीन मालवा अथवा मालवा क्षेत्र है।यह प्रमुख रूप से उज्जैन, इंदौर, देवास ,धार, रतलाम आदि जिलों में व्याप्त है।मालवीय का लोक साहित्य अत्यंत समृद्ध है इसके गीतों कथाओं और लोकोक्तियों की अलग बनक है और इसकी प्रसिद्धि का कारण भी है।
4. निमाड़ी – प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में बोली जाती है। इसका प्रचार प्रमुख रूप से खंडवा खरगोन बड़वानी धार झाबुआ देवास हरदा और होशंगाबाद जिला तक है। निवाड़ी के लोक साहित्य में अनुष्ठान भक्ति पर गीतों का बाहुल्य है।लोक कथाओं का था और लोकोक्तियों का भी अक्षय भंडार है इस क्षेत्र के प्रसिद्ध संत सिंगाजी के पद निमाड़ी भाषा में ही है। इस लोक भाषा पर गुजराती और राजस्थानी का प्रभाव दिखाई देता है।
5. भीली –भील जनजाति की भाषा भीली कहलाती है!इस समूह में भिलाषा की भाषा भिलाषी, बारेला की भाषा बरेली और पटलिया अथवा पटेलिया कहलाती है।
6.गोंड – गोंड जनजाति की बोली गोंडी कहलाती है। यह गोंडवाना पुराने मध्य भारत की प्रमुख बोली रही है। द्रविड़ भाषा परिवार की इस बोली के अन्य रूपों में प्रधानी, अबूझमाड़ई, डोर्ली आदि प्रमुख है।इसकी मौखिक परंपरा में गीत और कथाओं के साथ ही बाना वाद्य के साथ गाए जाने वाली प्रमुख घटनाओं की समृद्ध परंपरा है।इस बोली का विस्तार प्रदेश के मंडला ,डिंडोरी बालाघाट, जबलपुर ,सिवनी, शहडोल, सीधी रायसेन, होशंगाबाद, बैतूल ,छिंदवाड़ा आदि जिलों तक देखा जा सकता है।
6. कोरकू–कोरकू जनजाति की बोली कोरकू कहलाती है! "कोर" का अर्थ मनुष्य है।
कोरकू ऑस्ट्रिक भाषा परिवार की बोली सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं के साथ विस्तारित है।
प्रदेश के खंडवा, बुरहानपुर, हरदा, होशंगाबाद बैतूल आदि जिलों में यह प्रचलित है।
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