साहित्य का इतिहास-
साहित्य के दर्पण में समाज सदैव प्रतिबिंबित होता है।प्रत्येक देश का साहित्य वहां की जनता की चित्तवृत्तियों का इतिहास कहा जा सकता है।जनता की मानसिक स्थिति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी बदलाव आता है।साहित्य के मूल में परिवर्तित सामूहिक चित्र पक्षियों को आधार बनाकर साहित्य की परंपरा का व्यवस्थित अनुशीलन ही साहित्य का इतिहास कहलाता है।
हिंदी साहित्य का इतिहास-
हिंदी साहित्य में लगभग 1000 वर्ष का इतिहास केवल काव्य का इतिहास है। हिंदी काव्य की इसी समृद्ध परंपरा में भारतीय समाज की बदलती परिस्थितियों और बदली जन चेतना को स्पष्ट रूप से परिलक्षित किया जा सकता है। हिंदी साहित्य का आधुनिक काल पद्य एवं गद्य की विधाओं का विकास काल है।तथा आधुनिक काल साहित्य की समस्त विधाओं का इतिहास है।रचनाओं की केंद्रीय प्रकृति के आधार पर ही विभिन्न कालों का नामकरण किया गया है।यद्यपि प्रत्येक युग में विविध विषयों पर आधारित कविताएं रची गई हैं।
हिंदी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजित किया गया है-
- आदिकाल-(वीरगाथा काल) सन 993 से 1318 तक (संवत 1050 से 1375 तक)
- पूर्व मध्यकाल-(भक्ति काल) सन 1318 से 1643 तक (संवत 1375 से 1700 तक)
- उत्तर मध्यकाल-(रीतिकाल) सन 1643 से 1843 तक (संवत 17100 से 1900 तक)
- आधुनिक काल - सन 1843 से आज तक (संवत 1900 से आज तक)
1. आदिकाल या वीरगाथा काल किसे कहते हैं ?
उत्तर– आदिकाल या वीरगाथा काल हिंदी का आरंभिक काल था। इसलिए इसे आदि काल नाम दिया गया। इस काल में वीरों की जीवन कथा पर आधारित गाथा प्रधान कविताएं रची गई। इन कविताओं के आधार पर इसे वीरगाथा काल कहा गया।इन कविताओं को रचने वाले चारण और भाट हुआ करते थे। इसीलिए इस काल को चारण काल भी कहा गया है।
2. आदिकाल या वीरगाथा काल की प्रमुख प्रवृत्तियां या विशेषताएं बताइए ?
उत्तर–
- वीर रस की प्रधानता।
- युद्धों का सजीव चित्रण।
- हास्य दातों की प्रशंसा एवं उनका यशगान।
- ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण।
- इतिहास के साथ कल्पना का संयोग, ऐतिहासिक तथ्य गौण।
- सिंगर एवं अन्य रसों का भी समावेश।
- प्राकृत ,अपभ्रंश , डिंगल एवं पिंगल भाषा का प्रयोग।
3. आदिकाल के प्रमुख कवि एवं उनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर– आदिकाल के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएं निम्नलिखित है-
1. चंद्रवरदाई-पृथ्वीराज रासो
2. नरपति नालह – बीसलदेव रासो
3. जगनिक-परमाल रासो आल्हा खंड
4. सारंगधर-हम्मीर रासो
5. दलपति विजय-खुमान रासो
6. विद्यापति-पदावली, कीर्ति लता और कीर्ति पताका।
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