अलंकार का अर्थ परिभाषा एवं उदाहरण-जानिए अलंकार आसान शब्दों में-अलंकार की परिभाषा– शब्द तथा अर्थ की उस विशेषता को अलंकार कहते हैं जिससे काव्य का श्रंगार होता है।
“अलंकार” वह शब्द युक्ति अथवा क्रिया है, जिसके द्वारा कब के शब्द और अर्थ में सौंदर्य वृद्धि होती है!
काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्म को अलंकार कहते हैं!
अलंकारों का क्या महत्व है–
काव्य में अलंकारों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
अलंकार विहीन काव्य आस्पष्ट और नीरस लगता है। उसके भाव स्पष्ट नहीं होते हैं। काव्य की भाषा में सोच और धाराप्रवाह नहीं आ पाता है। अलंकारों के प्रभाव से काव्य में चमत्कार आ जाता है।
अलंकार के भेद बताइए–
अलंकार के मुख्यता दो भेद किए गए हैं–शब्दालंकार तथा अर्थालंकार!
शब्दा अलंकार–जहां पर केवल शब्दों द्वारा काव्य में चमत्कार या सौंदर्य उत्पन्न होता है वहां पर “शब्दालंकार”होता है!
अर्थालंकार–जहां पर अर्थ के द्वारा काव्य सौंदर्य में वृद्धि होती है वहां पर अर्थालंकार होता है!
रूपक अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित इस प्रकार है–
रूपक अलंकार– काव्य में जहां पर उपमेय और उपमान में एकरूपता आ जाए या जहां पर उपमेय का उपमान के साथ अभेद दिखाया जाए, वहां पर रूपक अलंकार होता है। यह अलंकार समास द्वारा, ''द्वारा या 'का ’के ' की द्वारा बताया जाता है!
रूपक अलंकार के उदाहरण-
१.नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर है।
२. उदित उदयगिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग!
बिकते संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग।
३. जीवन की चंचल सरिता में, फेंकी मैंने मन की जाली!
४. मुख रूपी चांद पर राहु भी धोखा खा गया!
५. अंबर पनघट में डुबो रही, तारा घट उषा नागरी!
६. चरण सरोज पखारण लगा।
उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहितउत्प्रेक्षा अलंकार–जहां पर उपमेय में उपमान की संभावना व्यक्त की जाए, वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है! इसमें मनु, मानहु, मानो, जनु, जानहु, जानो आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण–
१. मानो तरू भी झूम रहे हैं , मंद पवन के झोंके से।
२. बिगसी मनो मंजुल मंजुकली।
३. लागत अवध भयावन भारी, मानहु काल राति अंधयारी।।
४. हिना के कणों से पूर्ण, मानो हो गए पंकज नए।
५. मनो नीलमणि- सैल पर आतप परयो प्रभात।
६. मानहू सूर काढ़ई डारी है वारी मध्य मै मीन।
अतिशयोक्ति अलंकार–काव्य में जहां पर किसी व्यक्ति या वस्तु का स्वभाविकता से अधिक बढ़ा- चढ़ाकर वर्णन किया जाए वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है!
अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण–
१. वह शर इधर गांडीव-गुण से भिन्न जैसे ही हुआ, धड़ जयद्रथ का उधर सिर से चिन्ह वैसे ही हुआ!!
२. देखो दो–दो मेघ बरसते मै प्यासी की प्यासी।
३. पानी परात को हाथ छुयों नहीं नैननि के जल सो पग धोए!
४.हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग ,लंका सारी जल गई ,गए निशाचर भाग।।
५. पड़ी अचानक नदी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।।
उपमा अलंकार की परिभाषा तथा उदाहरण इस प्रकार है–
उपमा अलंकार की परिभाषा–काव्य में जहां पर उपमेय के साथ उपमान की किसी समान धर्म को लेकर तुलना की जाए, वहां पर 'उपमा अलंकार' होता है!
उपमा अलंकार के कितने अंग होते हैं–
उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं–
१. उपमेय– जिस वस्तु या व्यक्ति आदि की तुलना की जाए, उसे उपमेय कहते हैं। जैसे–मुख।
२. उपमान– जिससे तुलना की जाए,उसे "उपमान” कहते हैं। जैसे–चंद्रमा।
३. साधारण धर्म – जो गुण या क्रिया उपमान और उपमेय में समान रूप से हो,उसे "साधारण धर्म" कहते हैं। जैसे–सुंदरता आदि।
४.वाचक शब्द– जिस शब्द से समानता प्रकट की जाती है,उसे "वाचक शब्द" कहते हैं। जैसे–समान,सदृश,सा,सी,से आदि।
उदाहरणार्थ–सीता का मुख चंद्रमा के समान सुन्दर है।
इस वाक्य में ' मुख ' उपमेय है, "चंद्रमा" उपमान है, "समान" वाचक शब्द और "सुंदर" साधारण धर्म है।इस प्रकार चारों अंगों वाली उपमा को पुर्णोंपमा कहते हैं।
अगर ये चारों अंग लुप्त हों तो वहां पर लुप्तोपमा होती है।
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