मधुमक्खियों की वीरता
एक पेड़ पर मधुमक्खियों ने शहद का एक छत्ता तैयार किया था। कुछ मक्खियां वहां पहरा देती और कुछ फूलों का रस लेने चली जाती थी। 1 दिन बंदर ने उस छत्ते को देख लिया । वह सोचने लगा कि आज तो मैं इसे तोड़कर खूब शहद खाऊंगा , बड़ा मजा आएगा। यह सोचकर बंदर छत्ते की ओर बढ़ने लगा ।
एक पहरेदार मक्खी बोली- " बंदर! खबरदार जो तू यहां आया यह शहद हमारा है यदि तू इसे तोड़ेगा तो तुझे दंड मिलेगा।"
बंदर ने कहा- " तुम मुझे क्या दंड दोगी ? अरे ! तुम जरा - सी तो हो, मेरा क्या बिगाड़ लोगी? "
यह कहकर बंदर जैसे छत्ते के पास पहुंचा, वैसे ही मधुमक्खियों ने उस पर एक साथ हमला बोल दिया। किसी ने बंदर की नाक पर , किसी ने आंख पर , किसी ने मुंह पर और किसी ने कान पर जोर से काट लिया। बंदर दर्द के मारे बिलबिलाता हुआ वहां से भाग खड़ा हुआ। लेकिन मधुमक्खियों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। बंदर ने बार-बार क्षमा मांगी, परंतु मधुमक्खियों ने उससे कहा- " अरे बंदर तेरी हेकड़ी समाप्त करके ही दम लेंगे।"
अंततः बंदर अपने बचाव के लिए एक बड़े तालाब में कूद गया। उसने पानी में डुबकी लगाई। अब मधुमक्खियों से नहीं खा सकती थी। लेकिन मधुमक्खियों को उसे जो दंड देना था, वे दे चुकी थी।
वे लौट गईं।
बंदर बड़ी देर के बाद पानी से बाहर आया। उसका सारा शरीर सूजा पड़ा था। उसने अपनी आंखों कानों को हाथ लगाया और मन ही मन कहने लगा--
" किसी को भी तुच्छ नहीं समझना चाहिए इन छोटी-छोटी मधुमक्खियों ने आज मेरा जो हाल किया है उसे केवल मैं ही जानता हूं। "
Is kahani se hame yah sicha milti he ki kisi ko tuchch nahi samajna chahie
ReplyDeleteAti uttam
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