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 नमस्कार साथियों आज हम डिस्कस करेंगे निम्नलिखित बिंदुओं पर जो कि कक्षा दसवीं विज्ञान विषय का महत्वपूर्ण टॉपिक है-

  1.   ऊर्जा कहां कहां से प्राप्त होती है ?
  2. समुद्रों से कौन-कौन सी ऊर्जा प्राप्त होती है ?
  3.  ज्वारीय ऊर्जा किसे कहते हैं ?
  4.  तरंग ऊर्जा किसे कहते हैं ?
  5. महासागरीय तापीय ऊर्जा किसे कहते हैं ?
  6.  भूतापीय ऊर्जा किसे कहते हैं ?
  7.  नाभिकीय ऊर्जा किसे कहते हैं ?

 समुद्रों से ऊर्जा

1.  ज्वारीय ऊर्जा - घूर्णन गति करती पृथ्वी पर मुख्य रूप से चंद्रमा के गुरुत्व खिंचाव के कारण सागरों में जल का स्तर चढ़ता व गिरता रहता है। यदि आप समुद्रर के निकट रहते हैं अथवा कभी समुद्र के निकट किसी स्थान  पर जाते हैं तो प्रयास कीजिए की आप यह परीक्षण कर सकें किस समुद्र में जल का स्तर दिन में किस प्रकार परिवर्तित होता है। इस परिघटना को ज्वार भाटाा कहते हैं। ज्वार भाटे में जल के स्तर के  चढ़ने तथा गिरने से हमें ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त होती है। ज्वारीय ऊर्जा  का दोहन सागर केे किसी संकीर्ण क्षेत्र पर बाँध का  निर्माण करके किया जाता है। बांध के द्वार पर स्थापित टरबाइन ज्वारी ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर देती है। आप स्वयं यह अनुमान लगा सकते हैं कि इस प्रकार के बांध निर्मित किए जा सकने वाले स्थान सीमित हैं।

2. तरंग ऊर्जा - इसी प्रकार समुद्र तट के निकट विशाल तरंगों की गतिज ऊर्जा को भी विद्युत उत्पन्न करने के लिए इसी ढंग से ट्रैप किया जा सकता है। महासागरों के पृष्ठ पर आर-पार बहने वाली प्रबल पवन तरंग उत्पन्न करती है। तरंग ऊर्जा का वहीं पर व्यवहारिक उपयोग हो सकता है जहां तरंगे अत्यंत प्रबल हो। तरंग ऊर्जा को ट्रैप करने के लिए विविध युक्तियां विकसित की गई है ताकि टरबाइन को घुमाकर विद्युत उत्पन्न करने के लिए इनका उपयोग किया जा सके।

3. महासागरीय तापीय ऊर्जा - समुद्रों अथवा महासागरों के पृष्ठ का जल सूर्य द्वारा तप्त हो जाता है जबकि इनके गहराई वाले भाग का जल अपेक्षाकृत ठंडा होता है। ताप में अंतर का उपयोग सागरी तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयंत्र(Ocean Thermal Energy Conversion Plant या OTEC  विद्युत संयंत्र) में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।OTEC विद्युत संयंत्र केवल तभी प्रचालित होते हैं जब महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2 km तक की गहराई पर जल के ताप में 20 डिग्री का अंतर हो। अरस्तु के तप्त जल का उपयोग अमोनिया जैसे वास्तुशिल्प लोगों को उबालने में किया जाता है। इस प्रकार बनी द्रवों की वास्प फिर जनित्र के टरबाइन को घुमा दी है। महासागर की गहराइयों से ठंडे जल को पंपों से खींच कर वास्प को ठंडा करके फिर से द्रव्य में संघनित किया जाता है।

4. भूतापीय ऊर्जा - भूमिकी परिवर्तनों के कारण भूपर्पटी में गहराइयों पर तप्त क्षेत्रों में बिजली चट्टाने ऊपर धकेल दी जाती है जो कुछ क्षेत्रों में एकत्र हो जाती है। इन क्षेत्रों को तप्त स्थल कहते। जब भूमिगत जल इन तप्त स्थलों के संपर्क में आता है तो भाप उत्पन्न होती है। कभी-कभी इस तप्त जल को पृथ्वी के पृष्ठ से बाहर निकालने के लिए निकास मार्ग मिल जाता है। इन निकास मार्गो को गर्म चश्मा या उस  उष्ण स्त्रोत कहते हैं। कभी-कभी यह भाप चट्टानों के बीच में फस जाती है जहां इसका दाब अत्यधिक हो जाता है। तप्त तो स्थलों तक पाइप डालकर इस भाप को बाहर निकाल लिया जाता है। उच्च दाब पर निकली यह भाप विद्युत जनित्र की टरबाइन को घुमा दी है जिससे विद्युत उत्पादन करते हैं। इसके द्वारा विद्युत उत्पादन की लागत अधिक नहीं है परंतु ऐसे बहुत कम क्षेत्र हैं जहां व्यापारिक दृष्टिकोण से ऊर्जा का दोहन करना व्यावहारिक है। न्यूजीलैंड तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भूतापीय ऊर्जा पर आधारित कई विद्युत शक्ति संयंत्र कार्य कर रहे हैं।

5. नाभिकीय ऊर्जा -  नाभिकीय ऊर्जा कैसे उत्पन्न होती है ? नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी भारी परमाणु ( जैसे यूरेनियम, प्लॉटोंनियम अथवा थोरियम) के नाभिक को निम्न ऊर्जा  neutron बमबारी करके हल्के नाभिको में तोड़ा जा सकता है। जब ऐसा किया जाता है तो विशाल मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। यह तब होता है जब मूल नाभिक का द्रव्यमान व्यक्तिगत उत्पादों के द्रव्यमानो के योग से कुछ ही अधिक होता है। उदाहरण के लिए यूरेनियम के एक परमाणु के विखंडन में जो ऊर्जा मुक्त होती है वहां कोयले के किसी कार्बन परमाणु के दहन से उत्पन्न ऊर्जा की तुलना में एक करोड़ गुनी अधिक होती है। विद्युत उत्पादन के लिए डिजाइन किए जाने वाले नाभिकीय संयंत्रों में इस प्रकार के नाभिकीय ईंधन स्वपोषी विखंडन श्रंखला अभिक्रिया का एक भाग होते हैं जिसमें नियंत्रित दर पर ऊर्जा मुक्त होती है इस मुक्त ऊर्जा का उपयोग भाप बनाकर विद्युत उत्पन्न करने में किया जा सकता है। नाभिकीय विद्युत शक्ति संयंत्रों का प्रमुख संकट पूर्णता उपयोग होने के पश्चात शेष बचे नाभिकीय ईंधन का भंडारण तथा निपटारा करना है क्योंकि शेष बचे ईंधन का यूरेनियम अभी हानिकारक कणों में क्षयित होता है। यदि नाभि की अपशिष्ट ओं का भंडारण तथा निपटारा उचित प्रकार से नहीं होता है तो इससे पर्यावरण सनदूषित हो सकता है। इसके अतिरिक्त नाभिकीय विकिरण ओं के आकस्मिक रिसाव का खतरा भी बना रहता है। नाभिकीय विद्युत शक्ति संयंत्रों के प्रतिष्ठापन की अत्यधिक लागत पर्यावरण संदूषण का प्रबल खतरा तथा यूरेनियम की सीमित उपलब्धता वहत स्तर पर नाभिकीय ऊर्जा के उपयोग को निषेध बना देते हैं। 

नाभिकीय विद्युत शक्ति संयंत्रों के निर्माण से पूर्व नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग पहले विनाश के लिए किया गया। किसी नाभिकीय हथियार में होने वाली श्रंखला विखंडन अभिक्रिया का मूल सिद्धांत नियंत्रित नाभिकीय रिएक्टर के सिद्धांत के समान है परंतु दोनों प्रकार की युक्तियों का निर्माण एक दूसरे से पूर्णता भिन्न होता है।


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