कबीर और रहीम के दोहे|| Kabeer Evam Raheem Ke Dohe
रहीम के 15 प्रसिद्ध दोहे (अर्थ सहित)
1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
अर्थ: प्रेम का रिश्ता नाजुक धागे जैसा है, झटके से न तोड़ो। टूट जाए तो जुड़ता नहीं, और जुड़े भी तो गांठ रह जाती है।
2. तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति संचहि सुजान॥
अर्थ: पेड़ खुद फल नहीं खाते, तालाब खुद पानी नहीं पीते। बुद्धिमान लोग धन दूसरों की भलाई के लिए जोड़ते हैं।
3. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥
अर्थ: बड़ी चीज देखकर छोटी को फेंकना नहीं चाहिए। सुई जहाँ काम आए, वहाँ तलवार व्यर्थ है।
4. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥
अर्थ: अच्छे स्वभाव को बुरी संगत नहीं बिगाड़ सकती। चंदन पर साँप लिपटा रहता है, पर विष चंदन को नहीं लगता।
5. बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
अर्थ: बिगड़ी बात लाख कोशिश से भी नहीं बनती। फटे दूध से मक्खन नहीं निकलता।
6. रहिमन वे नर मर चुके, जे कहि मरे मान।
तिनकी जीवत रहत है, जो दुख सहि सहि जियें॥
अर्थ: मान-अभिमान से मरने वाले तो पहले ही मर चुके। वे जीवित हैं जो दुख सहकर भी जीते हैं।
7. क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात।
कह रहीम हरि का घट्यो, जो भृगु मारी लात॥
अर्थ: क्षमा बड़े लोगों को शोभा देती है। भृगु ने लात मारी फिर भी विष्णु ने क्षमा की।
8. जो बड़ेन को लघु कहें, नहिं रहीम घटि जाहिं।
गिरधर कविराय कहें, बड़े होत घटि जाहिं॥
अर्थ: जो बड़े को छोटा कहते हैं, उनकी महानता कम नहीं होती। जो खुद को बड़ा कहते हैं, वे घट जाते हैं।
9. रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीति।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भली बिदृति॥
अर्थ: नीच लोगों से न बैर अच्छा, न प्रीति। कुत्ते के काटने-चाटने दोनों में हानि है।
10. पानी गए न ऊबरै, मोती मानुस चून।
कहे रहीम साहस ते, तीनों बरबाद भून॥
अर्थ: पानी, मोती और चूना (सम्मान) एक बार खराब हो जाए तो बचते नहीं।
11. रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुन इठलाए सबै, दुख न लखे कोय॥
अर्थ: मन का दुख मन में ही छिपाओ। सुनकर सब हँसेंगे, कोई दुख नहीं समझेगा।
12. जो रहीम गरीब सो, सदा सहाय न दीन।
दुख में सहायक दूध को, अमृत होत न मीन॥
अर्थ: गरीब की मदद हमेशा नहीं होती। दुख में दूध मछली के लिए अमृत होता है (पर मिलता नहीं)।
13. रहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन की ठाठ।
आज हुते ना आज के, कल की कछु न बात॥
अर्थ: चुप बैठकर समय की गति देखो। आज जो हैं, कल नहीं रहेंगे।
14. खीर की कर छाजन में, छाछ की करि डार।
ताकी बड़ाई कहि करै, जो दूसरों की ख्वार॥
अर्थ: खुद की छाछ को छाजन में रखकर खीर को फेंकना और अपनी बड़ाई करना व्यर्थ है।
15. रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गई सब कोय।
ता दिन रही न मुँह लगी, जब रहीम गँवायो होय॥
अर्थ: जीभ बावरी है, सबको कुछ न कुछ कह देती है। जिस दिन चुप रही, समझो रहीम खो गया।
कबीर के 15 प्रसिद्ध दोहे (अर्थ सहित)
1. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥
अर्थ: दूसरों में बुराई ढूंढी तो कोई बुरा न मिला। अपने मन में झाँका तो खुद से बुरा कोई नहीं।
2. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥
अर्थ: सब धीरे-धीरे होता है। माली सौ घड़े डाले तब भी फल मौसम में ही लगता है।
3. गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥
अर्थ: गुरु और भगवान दोनों सामने हों तो गुरु के चरण छूएँ, जिन्होंने भगवान का रास्ता दिखाया।
4. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥
अर्थ: किताबें पढ़कर कोई पंडित नहीं बना। प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ ले तो सच्चा पंडित है।
5. कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥
अर्थ: सबकी भलाई मांगता हूँ। न किसी से दोस्ती, न बैर।
6. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होयगी, बहुरि करोगे कब॥
अर्थ: कल का काम आज करो, आज का अभी। पल में सब खत्म हो जाएगा, फिर कब करोगे?
7. कबीरा सोइ पीर है, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर॥
अर्थ: सच्चा संत वह जो दूसरों के दुख को समझे। जो नहीं समझता, वह संत नहीं।
8. साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय॥
अर्थ: इतना देना कि परिवार चल जाए। मैं भूखा न रहूँ और आने वाला साधु भी न जाए भूखा।
9. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजियो ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥
अर्थ: साधु की जाति नहीं, ज्ञान पूछो। तलवार की कीमत करो, म्यान पड़ी रहने दो।
10. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
अर्थ: बड़ा होना व्यर्थ अगर उपयोग न हो। खजूर का पेड़ न छाया देता, न फल आसानी से मिलते।
11. कबीरा ते नर अंध हैं, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥
अर्थ: गुरु को दूसरा और भगवान को मुख्य कहने वाले अंधे हैं। भगवान रूठें तो गुरु ठौर हैं, गुरु रूठें तो कोई ठौर नहीं।
12. निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निरमल करत सुभाय॥
अर्थ: निंदक को पास रखो। वह बिना साबुन-पानी के स्वभाव सुधार देता है।
13. बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि॥
अर्थ: बोली अनमोल है। हृदय में तौलकर ही बोलना चाहिए।
14. कबीरा गरब न कीजिए, काल गहे कर केस।
ना जाने कित मारिसी, कहाँ जाइसी कैस॥
अर्थ: घमंड मत करो। काल बाल पकड़कर खींचेगा, पता नहीं कैसे और कहाँ मारेगा।
15. साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय॥
अर्थ: साधु सूप जैसा हो – अच्छे को रखे, व्यर्थ को उड़ा दे।
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