राखालदास बनर्जी का जीवन परिचय || राखलदास बनर्जी का सामान्य परिचय || Biography Of Rakhaldas Banarji
राखालदास बनर्जी का जीवन परिचय || राखलदास बनर्जी का सामान्य परिचय || Biography Of Rakhaldas Banarji
● भारतीय पुरातत्वज्ञ और प्राचीन इतिहासकार राखालदास बनर्जी का जन्म 12 अप्रैल, 1885 को बंगाल के मुर्शिदाबाद में हुआ था।
● प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात उन्होंने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से इतिहास में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
● पढ़ाई के दौरान वे हरप्रसाद शास्त्री, बंगला लेखक रामेंद्रसुंदर त्रिपाठी व बंगाल सर्किल के पुरातत्व अधीक्षक डॉ. ब्लॉख के संपर्क में आए तथा इनकी संगत में आकर राखालदास बनर्जी की रुचि इतिहास और पुरातत्वविज्ञान में पैदा हुई। कॉलेज के समय से ही वे अन्वेषणों व उत्खननों में नौकरी करने लगे।
● इतिहास से लगाव को देखते हुए प्रांतीय संग्रहालय और लखनऊ के सूचीपत्र तैयार करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। इसे करते-करते उन्होंने इतिहास पर अच्छा अध्ययन कर डाला और इतिहास पर लेख-आलेख का कार्य शुरू कर दिए।
● वर्ष 1910 में उन्होंने परास्नातक (मास्टर डिग्री) की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। इसके बाद उन्हें प्रमोट करके उत्खनन सहायक (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के पद पर नियुक्त कर दिया गया।
● वर्ष 1917 में राखालदास बनर्जी को पूना (अब पुणे) में पुरातत्व सर्वेक्षण के पश्चिमी मंडल के अधीक्षक के तौर नियुक्त किया गया।
● कालांतर में उन्होंने महाराष्ट्र, गुजरात, सिंध (अब पंजाब), राजस्थान और मध्यप्रदेश की रियासतों का भ्रमण किया जिसके दौरान राखलदास बनर्जी ने अनेक काम किए। उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों का विवरण आज भी 'एनुअल रिपोर्ट्स ऑफ़ द आर्किपोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया' में उपलब्ध है।
● मध्यप्रदेश के भूमरा में उन्होंने खुदाई करवाई तथा प्राचीन गुप्तयुगीन मंदिर और मध्यकालीन हैहय-कलचुरी स्मारकों की खोज की।
● वर्ष 1922 में राखालदास बनर्जी एक बौद्ध स्तूप पर शोध कर रह थे जिसकी खुदाई के दौरान मोहनजोदड़ो की प्राचीन सभ्यता की खोज की।
● वर्ष 1980 में मोहनजोदड़ो को विश्व विरासत स्थल (संख्या 138) का नाम दिया गया था।
● राखालदास बनर्जी का वर्ष 1924 में स्थानांतरण पुरातत्त्व सर्वेक्षण के पूर्वी मंडल, कलकत्ता में हो गया, जहाँ वे लगभग दो वर्ष तक रहे। इस छोटी-सी अवधि में उन्होंने पहाड़पुर के प्राचीन मंदिर का उल्लेखनीय उत्खनन करवाया।
● वर्ष 1926 में कुछ प्रशासकीय कारणों से बनर्जी को सरकारी सेवा से अवकाश ग्रहण करना पड़ा।
● वे 'बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय' में प्राचीन भारतीय इतिहास के 'मनींद्र नंदी प्राध्यापक' पद पर अधिष्ठित हुए और मृत्यु पर्यंत इसी पद पर बने रहे।
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