ज्योतिबा फुले का जीवन परिचय|| ज्योतिबा फूले का परिचय || Biography of Jyotiba Fule
ज्योतिबा फुले का जीवन परिचय|| ज्योतिबा फूले का परिचय || Biography of Jyotiba Fule
● महात्मा ज्योतिराव फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को वर्तमान महाराष्ट्र में हुआ था।
● वर्ष 1841 में फुले का दाखिला स्कॉटिश मिशनरी हाई स्कूल (पुणे) में हुआ, जहाँ उन्होंने शिक्षा पूरी की।
● उनकी विचारधारा पूर्णतः स्वतंत्रता और समाजवाद पर आधारित थी।
● प्रमुख रचनाएँ – गुलामगिरी (1873), तृतीय रत्न (1855), पोवाड़ा: छत्रपति शिवाजीराज भोंसले यंचा (1869), शक्तारायच आसुद (1881) आदि।
● महात्मा ज्योतिराव फुले थॉमस पाइन की पुस्तक ‘द राइट्स ऑफ मैन’ से प्रभावित थे तथा उनका मानना था कि सामाजिक बुराइयों का मुकाबला करने का एकमात्र जरिया महिलाओं एवं निम्न वर्ग के लोगों को शिक्षा देना है।
● फुले ने अपने अनुयायियों के साथ मिलकर वर्ष 1873 में सत्यशोधक समाज का गठन किया, जिसका अर्थ है - ‘सत्य के साधक’ ताकि महाराष्ट्र में निम्न वर्गों को समान सामाजिक और आर्थिक लाभ प्राप्त हो सके।
● 11 मई, 1888 को महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता विट्ठलराव कृष्णजी वांडेकर द्वारा उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
● वर्ष 1848 में महात्मा ज्योतिराव फुले ने अपनी पत्नी (सावित्रीबाई) को पढ़ना और लिखना सिखाया, जिसके बाद इस दंपती ने पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्वदेशी रूप से संचालित स्कूल खोला, जहाँ वे दोनों शिक्षण का कार्य करते थे।
● वह लैंगिक समानता में विश्वास रखते थे और अपनी सभी सामाजिक सुधार गतिविधियों में अपनी पत्नी को शामिल कर उन्होंने अपनी मान्यताओं का अनुकरण किया।
● महात्मा ज्योतिराव फुले ने वर्ष 1852 तक तीन स्कूलों की स्थापना की थी, लेकिन वर्ष 1857 के विद्रोह के बाद धन की कमी के कारण वर्ष 1858 तक ये स्कूल बंद हो गए थे।
● ज्योतिराव ने ब्राह्मणों और अन्य उच्च जातियों की रूढ़िवादी मान्यताओं का विरोध किया और उन्हें ‘पाखंडी’ करार दिया।
● इन्होंने युवा विधवाओं के लिए एक आश्रम की स्थापना की तथा विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
● वर्ष 1868 में, ज्योतिराव ने अपने घर के बाहर एक सामूहिक स्नानागार का निर्माण करने का फैसला किया, जिससे उनकी सभी मनुष्यों के प्रति अपनत्व की भावना प्रदर्शित होती है, इसके साथ ही, उन्होंने सभी जातियों के सदस्यों के साथ भोजन करने की शुरुआत की।
● उन्होंने जन जागरूकता अभियान शुरू किया जिसने कालांतर में डॉ. बी. आर. अंबेडकर और महात्मा गाँधी की विचारधाराओं को प्रभावित किया।
● देहावसान : 28 नवंबर, 1890
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